चाँदनी रहती थी मेरे ख्वाबोंमें कभी,
हक़ीक़त को मेरा जलना पसंद था,
मेरी रातों को तेरी सिमटी हुई खामोशी का नज़राना कबूल था.
कल तक उम्मीद थी तुम्हारी मेरे होने की,
तुम्हारी सासोंने आज फासला तय कर दिया था,
मेरी सुलझी हुई राहोंको तुम्हारी बुझि हुई आखों का नज़राना कबूल था.
रात दुल्हन बनके मुझसे मिलने के लिए बेताब,
आज का दिन तुमसे बिछड़ने का जैसे एक जश्न था,
मेरी रूह को तुम्हारे पूरे होने का नज़राना कबूल था. : aasmit
कोणत्याही टिप्पण्या नाहीत:
टिप्पणी पोस्ट करा