बुधवार, ४ नोव्हेंबर, २००९


एक दिन एक बंदा निकल पड़ा खुदा की खोज में.
छोड़ दिया अपना महल, एशोआराम, अपनी पत्नी और बेटा;सबकुछ.
चल पड़ा न जाने कितने कोस दूर......
लेकिन क्या देखा उसने???
दुख से पीड़ित कोई रो रहा था,
बुढ़ापे से थका हुआ कोई कोस रहा था,
कोई निकल पड़ा था अपनी अंतिम यात्रा पे.....
सोच में पड़ गया बंदा बेचारा, बोला " इतने कष्ट में है दुनिया और खुदा......वो कहाँ है????
क्यूँ कोई किसीकि मदत नही कर पा रहा???"
इसी सवालोंसे परेशान चल पड़ा आगे,
एक पेड़ की छाव में बैठकर खो गया अपने ही ख़यालों में.
ना जाने कितने दिन बीत गये.....अपनी ही खोज में.
और बंदे को पता ना चला वो ही किसिका खुदा बन गया.

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